शहीद की पत्नी कहानियाँ
Synopsis – रश्मि एक बहुत सुंदर लड़की थी | जो भी उसे देखता था बस देखता ही रह जाता था | उसका सपना शिक्षक बनने का होता है लेकिन उसके पापा उसकी शादी सेना के कैप्टन कर देते हैं | रश्मि एक लड़के को जन्म देती है | कश्मीर में तेनात उसके पति शहीद हो जाते हैं | बच्चे के बड़े होने पर रश्मि अध्यापन का काम शुरू करती है | कैसी बितेगी रश्मि की उम्र की जिंदगी …? पूरी कहानी जाने के लिए आगे पढ़े …?
रश्मि एक बहुत ही सीधी और संस्कारी लड़की थी। पूरे इलाके में उसके सुंदरता और विनम्रता की चर्चा लगभग सभी घरों में होने लगी थी।
ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई उसने अपने घर के पास के कॉलेज से ही प्राप्त की थी। पूरे परिवार में आज आज उसके परिवार में एक अजीब सी खुशी का माहौल था, क्योंकि रश्मि ने अपने ग्रेजुएशन की फाइनल ईयर का एग्जाम प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर लिया था।अब रश्मि की उम्र बीस साल की हो गई थी।
उसकी उम्र बढ़ने के साथ-साथ रश्मि की सुंदरता में भी काफी निखार आने लगा था।जो भी नवयुवक उसको एक बार रश्मि को देख लेता था बस वह फिर देखता ही रह जाता था। रश्मि के पिताजी पास ही के एक विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे। उनके परिवार में दो बेटियाँ थी और एक बेटा था।
बड़ी बेटी की शादी एक प्रोफेसर से हुई थी जबकि छोटा बेटा ज्ञानेंद्र इंजीनियरिंग कॉलेज के दूसरे ईयर में था और मेकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था।रश्मि के पिताजी का नाम दीनानाथ जी था। वहा के इलाके में उनकी काफी प्रसिद्धि थी और उनके द्वारा पढ़ाये गए कई छात्र आज के दिन काफी अच्छे-अच्छे पोस्टों पर कार्यरत थे।
रश्मि ने ग्रेजुएशन के बाद बी. एड. की भी डिग्री अब कम्पलीट कर ली थी और उसके मन में भी एक टीचर बनने के सपने आने शुरू हो गए थे।
वह भी टीचर बनना चाहती थी इन्हीं सब सपनों के बीच में एक सपना रश्मि की पिताजी की ये थी कि अब जल्द से जल्द किसी अच्छे लड़के से रश्मि की शादी तय हो जाये। और वो समय भी बहुत नजदीक आ गया जब रश्मि की शादी के सिलसिले में कुछ लोग आज देखने उसे उसके घर पर आए थे।
लडके वाले जो देखने आए थे उनका लड़का सेना में कैप्टन था और देखने में भी काफी सुंदर था। लड़के के घरवालों ने रश्मि को देखते ही हामी भर दी थी और अगले बीस दिनों के बाद रश्मि की शादी की तिथि भी निर्धारित हो गई थी। और तय समय पर रश्मि की शादी बड़ी ही धूमधाम से संपन्न हो गई थी।
रश्मि के पति जो कि सेना में कैप्टन के पद पर आसीन थे- रश्मि के पति का नाम कैप्टेन ब्रजेश पांडेय (काल्पनिक नाम) था कैप्टेन आज वरमाला के समय अपनी पत्नी रश्मि को देखते ही बहुत ज्यादा खुश हो गए थे। रश्मि ने भी अपने पति को देखते ही अपना पूर्ण समर्पण भाव अपने पतिदेव के ऊपर न्योछावर कर दिया था।
सुहागरात के दिन दोनों बस एक-दूजे में खो गए थे। बेशुमार प्यार करने वाला पति पाकर रश्मि अब बहुत ही ज्यादा खुश रहने लगी थी। देखते ही देखते रश्मि अब अपने पतिदेव के साथ सरकारी आवास में रहने लगी थी।
पति ब्रजेश और रश्मि के बीच एक अजीब सी बॉन्डिंग हो गई थी।दोनो की शादी के तीन साल बाद रश्मि ने एक बहुत ही प्यारे बच्चे को जन्म दिया। रश्मि का पति भूत खुश था , क्युकी अब वो कैप्टेन से अब मेजर ब्रजेश बन गए थे और ऐसे समय में बच्चे को पाकर बहुत ही ज्यादा खुश थे। कुछ वर्षों के बाद मेजर ब्रजेश का ट्रांसफर अब कश्मीर में हो गया था।
अब जहा पर मेजर तैनात था मतलब कश्मीर में वाहा इन दिनों आतंकवादी काफी सक्रिय हो गए थे और पूरा कश्मीर के लोग आतंक के साये में जी रहे थे। आज मेजर ब्रजेश घर से बाहर जब निकल रहे थे तब उनकी आँखें नम थी क्युकी आज वो अपनी बीवी बच्चे से दूर जा रहे थे और अपनी पत्नी और बच्चे से मिलने के समय एकाएक उनके आँखों में आँसू भी आ गए थे। पत्नी ने जब उनकी आँखें नम देखी तो वह भी बहुत उदास हो गई उसे बहुत ज्यादा उलझन होने लगी।
रश्मि ने अपने पतिदेव से कहा-“ऐसा नही हो सकता कि आप ऑफिसर से बोलकर कुछ दिनों की छुट्टी ले लें और हमलोग अपने घर चले जायें।
“पति मेजर बिरजेश ने पत्नी को समझते हुए बोला। देखो रश्मि ज्यादा घबराओ मत कुछ दिनों के बाद वहा की स्तिथि सामान्य हो जाएगी और कश्मीर से आतंक का सफाया भी हो जाएगा बस कुछ दिन तो इंतजार कार् लो इतना कहने के बाद मेजर ब्रजेश ने पत्नी रश्मि को गले से लगा कर प्यार किया, फिर घर से बाहर निकल आएं और अपनी टीम के साथ गाड़ी मे बैठकर चल दिए कश्मीर में जाकर आतंकवादियों पर टूट पड़े।
आज उन्होनें एक बहुत ही बड़े आतंकवादी संगठन का खात्मा कर दिया था और आतंकवादियों के सरगना को भी उन्होंने अपनी टीम की मदद से पकड़कर सरकार को सौंप दिया था।
अब देखते ही देखते शाम के 6 बज गए थे। अब वो अपनी काफिले के साथ वापस लौट रहे थे। तभी अचानक वहा पर एक भयंकर विस्पोट हुआ और कुछ ही देर में सबके प्राण पखेडू उड़ गए। मेजर ब्रजेश भी बारूद के ढेर से गुजरते वक़्त अपने-आप को बचा नही पाये।
रश्मि ने जैसे ही अपने पति की निधन की समाचार को सुना तो वह सुनते ही बेसुध बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी। माँ को बेसुध होता देखकर बेटा भी अचेत हो पड़ा। थोड़ी देर के बाद जब रश्मि को होश आया तो उसने अपने अचेत बेटे को उठाया।
इधर मेजर ब्रजेश के शहीद होने की खबर सुनते ही सब उनके घर के सामने उनके साथ काम करने वाले तमाम यूनिट के लोगों ने रश्मि और उनके बेटे को ढाढ़स बढ़ाई लेकिन रश्मि और उसके बेटे की आँखों से अनवरत आँसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे। और फिर कुछ समय बाद मेजर शहीद ब्रजेश पांडेय के शव को सपरिवार उनके पैतृक जिले में भेजने की उचित व्यवस्था की गई। पूरे राजकीय सम्मान के साथ मेजर ब्रजेश के शव की अंत्येष्टि उनके छोटे से पुत्र के द्वारा उनके पैतृक स्थल पर कराई गई।
वहाँ पर सभी उपस्थित तमाम लोगों के आँखों में आँसुओं का सैलाब आ गया जब उस नन्हे से बालक के द्वारा अपने शहीद पिता के शव को मुखाग्नि दी गई।अब रश्मि मिसेज पांडेय से शहीद मेजर ब्रजेश पांडेय की पत्नी हो गई थी।
अब वहा के पूरे इलाके में अब रश्मि को शहीद की पत्नीके नेम से जाना जाने लगा धीरे धीरे उसने अपने आपको पूर्ण रूप से अपने बच्चो की परवरिश ध्यान केंद्रित कर दिया इस्पुरे क्रम को उनके माता पिता बहन और उसके इकलौती भाई की अभूतपूर्व भूमिका रही। बच्चे के बड़े होने पर रश्मि ने अध्यापन का काम भी अब शुरू कर दिया था।
धीरे-धीरे उनकी गृहस्थी अब चलने लगी थी लेकिन अब भी अकेले में रश्मि अपने शहीद पति के फोटो के सामने खड़ी होकर कभी-कभार घंटों रोती रहती थी और मन ही मन अपने पति से बात भी करती रहती थी।
पति का आदर्श चेहरा अब उसे सकारात्मक जीवन जीने की प्रेरणा देने लगा था और अब शहीद की पत्नी कामान-सम्मान भी पूरे इलाके में काफी होने लगा था।