बदला कहानी हिंदी में
कविता एक पच्चीस साल की गृहिणी थी। कविता और उसका पति दीपक, कुछ दिनों पहले ही एक सोसायटी में शिफ्ट हुए थे। वह अभी यहां किसी को ज्यादा जानते नहीं थे।
दीपक की सेलरी अभी इतनी भी ज्यादा अच्छी नहीं थी कि वह एक फ्लेट खरीद सके, लेकिन यहां मुंबई में आते ही जब वह किराए का फ्लेट ढूंढ रहा था, तब उसे ब्रोकर ने इस सोसायटी में एक फ्लेट दिखाया, और उसे कहा कि किराए पर लेने के बजाय वह इस फ्लेट को खरीद ही ले। इसका मालिक इंडिया में अपना सब कुछ बेचकर लंडन शिफ्ट हो रहा है तो वह इसे औने पौने दामों पर बेच रहा है और वो भी पूरे सामान के साथ।
दीपक पहले अकेला ही मुंबई में आया था घर देखने के लिए। उसे यह सौदा बड़ा ही अच्छा लगा तो उसने सीमा और अपने माता पिता को फोन करके पूछा। सभी ने उसे हां कहा और उसने तुरंत ये घर खरीद लिया और कविता को भी बुला लिया। आज दीपक अॉफिस गया था तो कविता घर के लिए शॉपिंग करके लाई।
कविता रोजमर्रा के काम खुद ही करती थी। आज भी वह बाजार लेकर, मार्केट से घर आ रही थी। उसके दोनों हाथों में सामान के थैले थे। लिफ्ट में चढ़ते ही उसने थैले नीचे रख दिए और अपने फ्लोर का बटन दबा ही रही थी तो उसकी नजर वहां पर पहले से ही खड़े एक आदमी पर पड़ी। वह एक साठ पैंसठ साल के बुजुर्ग थे। कविता ने उनकी मदद करने के हिसाब से पूछा,
” अंकल आपको कौन से फ्लोर पर जाना है?
लेकिन कुछ भी जवाब देने के बजाय वो बुजुर्ग गुस्से से कविता की ओर देख कर उसे घूरने लगे। उनकी आंखों और चेहरे पर इतना ज्यादा गुस्सा झलक रहा था कि, मानों अभी गुस्से से उसे मार ही देंगे। कविता एकदम से सकपका गई और जरा सा पीछे सरक गई।
फिर भी हिम्मत जुटाकर उसने उनसे पूछ ही लिया,
” अंकल जी, मैंने कुछ गलत पूछा क्या आपसे? आप मुझे इतना गुस्से से क्यों देख रहे हो?”
इतना पूछने पर भी उस बुजुर्ग को कोई फर्क नहीं पड़ा और उन्होंने कविता को ऐसे ही घूरते हुए, अपना मुंह दूसरी तरफ कर लिया और वे उसके पीछे जाकर खड़े हो गए। कविता ने भी कंधे उचकाकर अपने फ्लोर का बटन दबा दिया। लिफ्ट चल पड़ी, लेकिन उन बुजुर्ग ने अभी तक भी अपने फ्लोर का बटन दबाया नहीं था। अब कविता ने भी उन्हें इग्नोर कर दिया और अपना मोबाइल देखने लगी। उसने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
कविता का फ्लेट सबसे उपर की मंजील पर था यानी कि उन्नीसवे फ्लोर पर। जब उसका फ्लोर आया तो वह अपना सामान लेकर लिफ्ट से बाहर निकलने की तैयारी करने लगी। जब उसने अपना सारा सामान निकाल लिया और एक नजर लिफ्ट में डाली तो उसे वह बुजुर्ग कही नहीं दिखाई नहीं दिए। उसको इस बात की बहुत हैरानी हुई कि ग्राउंड फ्लोर से लेकर तो उसके फ्लोर तक लिफ्ट एक बार भी नहीं रुकी, तो फिर वह बुजुर्ग गए कहां? स्वाभाविक है कि लिफ्ट में एक ही दरवाजा होता है, तो फिर वो गायब कैसे हो गए?
कविता इसी कशमकश में अपना सामान लेकर अपने फ्लेट तक आई और जैसे तैसे दरवाजा खोला।
सामान रखकर वो सोफे पर बैठ गई और सामान का हिसाब किताब करने लगी। लेकिन बार बार उसकी सुई इसी बात पर आकर अटक जाती थी कि वो बुजुर्ग आखिर गए तो गए कहां। और उनका गुस्से से तमतमाता हुआ चेहरा भी बार बार उसकी आंखों के सामने आ रहा था। बहुत सोच सोच कर उसका सिर दुखने लगा तो वह वहीं सोफे पर ही लेट गई और सोचते सोचते ही उसकी आंख लग गई।
सोफे पर सोई हुई कविता को सपना आता है कि, अंदर के बेडरूम में एक लड़की ने गले में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है। उस लडकी की आंखें खुली हुई और बाहर निकली हुई थी। और उसकी गर्दन भी पूरी तरह लटकी हुई, और हाथ पैर गले हुए थे, जिसमें से खून टपक रहा था।
अब उसने देखा कि कमरे में जमा कुछ लोगों ने उस लड़की को फंदे से उतारकर नीचे रखा। उस लड़की के पास बैठकर एक व्यक्ति घुटनों में सिर छिपाकर रो रहा है। उसी के पास एक अधेड़ औरत और एक आदमी भी बैठे रो रहे थे। अब धीरे धीरे सारे लोग गायब हो गए और कमरे में केवल उस लड़की की लाश और उसके पास बैठा वह बुजुर्ग व्यक्ति, वह अधेड़ औरत और वह आदमी ही रह गए थे। एकाएक वह बुजुर्ग, महिला, वह आदमी और वह मृत लड़की, चारो जोर जोर से हंसने लगते हैं। कविता को अब उस आदमी और बुजुर्ग का चेहरा साफ दिखाई दे रहा था। वह वही बुजुर्ग थे जो उसे लिफ्ट में मिले थे उन्हें देखकर कविता हैरान रह जाती है। और उस आदमी को देखकर तो कविता पसीने से लथपथ ही हो गई। वह आदमी खून से लथपथ था। और ऐसे खड़ा था मानो उसकी सभी हड्डियां चकनाचूर हो गई हो, उसका सिर भी फटा हुआ था। उन सभी के मुंह में दांत नहीं थे इसलिए उनका मुंह पूरा खाली लग रहा था। वे हंसते हुए कविता की ओर आ रहे थे, और कविता डर कर पीछे हटती जा रही थी। और पीछे जाते जाते वह बालकनी तक पहुंच जाती और बाल्कनी की रेलिंग से टिककर खड़ी हो जाती है, तभी वह लड़की अपने हाथ कविता के गले को दबाने के लिए बढ़ाती है और कविता पीछे की ओर झुककर नीचे गिरने लगती है। सपने में अपने को गिरते हुए देखकर कविता जोर से चिल्लाई और उठकर बैठ गई। उसकी सांसें तेज होने लगी। उठकर उसने पास में रखा हुआ ग्लास का पानी एक ही घूंट में गटक लिया।
तभी कविता को लगता है कि अंदर बेडरूम से कुछ आवाजें आ रही है। उसे लगता है कि शायद दीपक आ गया है। वह सोई होगी इसलिए बेल की आवाज सुनाई नहीं दी होगी तो अपनी चाबी से ही दरवाजा खोलकर अंदर आया होगा। वह जैसे जैसे बेडरूम के नजदीक जा रही थी, आवाज साफ सुनाई दे रही थी। उसे लगा मानो कोई दो तीन लोग बातें कर रहे है। यह दीपक की आवाज नहीं थी, इसलिए उसने घबराकर, कमरे के अंदर झांक कर देखा तो डर के मारे उसके हाथ पांव फूल गए। सांसे और भी तेज रफ्तार से चलने लगी। अंदर वही का वही सीन था, जो उसने अभी सपने में देखा था। बस वह लड़की फंदे पर नहीं लटकी थी नीचे बाकी सबके साथ बैठी हुई थी।
” कौन है आप लोग, और अंदर कैसे आ गए? ” कविता ने दरवाजे पर खड़े खड़े ही, हिम्मत जुटाकर पूछा तो वे सभी उसकी और घूर कर देखने लगे। तब उस लड़की ने कविता की ओर चलकर आते हुए कहा,
” हम कौन हैं? हम इस घर के मालिक हैं। हमें तो तुमसे पूछना चाहिए कि तुम अंदर कैसे आ गई।”
और जैसे जैसे वह लड़की कविता के नजदीक आती जा रही थी, वैसे वैसे उसके चेहरे पर क्रूर भाव बढ़ते ही जा रहे थे। अब वह कविता के एकदम पास में खड़ी थी, वह लड़की ठीक वैसी ही दिख रही थी जैसा उसने सपने में देखा था। बेहद डरावनी लग रही थी।
कविता डर कर पीछे भागी और भागते हुए कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया।
कमरे से बुरी तरह से गुर्राने की, चिल्लाने की, हंसने और रोने की आवाजे आ रही थी।
कविता हांफती हुई सोफे पर बैठी थी। जैसे ही आवाज बढ़ती थी वैसे ही उसकी धड़कन भी बढ़ती जाती थी।
वह सोफे पर से एक बार भी उठी नहीं। दीपक अॉफिस से घर आया और उसने बेल बजाई तो वह दरवाजा खोलने के लिए भी उठी नहीं। आखिरकार अपनी चाबी से दरवाजा खोलकर वह अंदर आया तो कविता सामने की ओर टकटकी लगाए देख रही थी। उसके चेहरे पर मंद मंद मुस्कान थी, वह ऐसे देख रही थी मानो कोई बैठा हुआ हो उसके सामने।
दीपक ने एक दो बार कविता को आवाज दी लेकिन उसने बिल्कुल भी कोई रिस्पांस नहीं दिया। तो दीपक ने उसके पास जाकर उसके कंधे को हिलाया। और जैसे ही कविता आंख उठाकर उसकी ओर देखा तो दीपक के होश ही उड़ गए। कविता का चेहरा भी बेहद डरावना हो गया था और वो लाल लाल आंखों को बड़ी करके, उसे घूरने लगी। और घूरते घूरते हंसने लगी और दीपक की ओर बढ़ने लगी।
दीपक घबराकर, घर का दरवाजा बंद करके उल्टे पांव वापस भाग गया।
वह काफी कुछ समझ गया था। वह हांफते हुए जैसे ही नीचे पहुंचा, तो नीचे कविता की लाश पड़ी थी, उसके चारों ओर लोग जमा थे, और इतनी ऊंचाई से गिरने से कविता की मौके पर ही मौत हो गई थी।
सब संस्कार कंपलिट करने के बाद जब दीपक ने फ्लेट के बारे में पता किया तो वह हैरान करने वाला था। ब्रोकर ने उसे झूठ बोल कर फंसाकर यह भूतिया फ्लेट उसे बेच दिया था। उस फ्लैट में एक बुजुर्ग अपनी पोती और पत्नी के साथ रहते थे। बुजुर्ग अब उम्र के कारण बीमार रहने लगे थे और इसी कारण उनकी नौकरी भी छूट गई थी। आर्थिक तंगी के कारण उनकी पोती ने सुसाइड कर लिया था। अब उस बुजुर्ग दंपति का एकमात्र सहारा भी छिन गया था। वे अब उस घर में रहना नहीं चाहते थे और उसे बेचकर कोई छोटा घर खरीदना चाहते थे। लेकिन उस घर को कोई भी खरीदने के लिए तैयार नहीं हो रहा था। तो एक धोखेबाज बिल्डर ने उनसे धोके से साईन करवा कर यह घर अपने नाम लिखवा लिया। लेकिन बुजुर्ग दंपति ने घर से निकलने के बजाय, इसी फ्लेट में सुसाइड कर लिया था। उस बिल्डर को भी तुरंत इसकी सजा मिली और दूसरे ही दिन वह भी इस फ्लेट की बाल्कनी से गिरकर मर गया। इसके बाद जो भी इस फ्लेट को देखने आता था, उन चारों की आत्माएं उन्हें ऐसे ही डराती थी वह या तो डर के मारे मर जाता था और भूत बन जाता था, जैसे कविता बन गई थी, या फिर उल्टे पांव भाग जाता था।
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