तालाब का भूत
माँ… माँ…माँ…
मुझे उससे बचा ले माँ…वो.. वो…मुझे…मार.. देगी।”
रामकेश जो कि 13 साल का लड़का था भागता हुआ पसीने में लथपथ भयभीत स्थिति में अपनी माँ की हाथ पकड़ लेता है।
क्या हुआ…बेटा… तू इतना क्यों डरा हुआ है?
माँ ने भी रामकेश का हाथ थाम लिया। और उसे पास में खाट पर लिटाया ओर पानी लायी और रामकेश को पानी पिलाया।
अब बता बेटा क्या हुआ?”
रामकेश की माँ ने उसका हाथ थामते हुए कहा
माँ… अपने गाँव के जोहड़ में भू… भू…त… भूत है।
मैं वहाँ जोहड़ से पहले अपने खेत में क्रिकेट खेल रहा था। तो राजू ने एक शॉट में गेंद सूखे जोहड़ में पहुंचा दी । मैं.. मैं…
अकेला वहाँ बॉल लेने गया। तो मैने देखा जोहड़ में एक औरत एक बड़े पत्थर पर मेरी तरफ पीठ करके बैठी है। उसने घाघरा लुगड़ी पहन रखी थी।
मैने सोचा कोई बकरी चराने वाली होगी। बॉल उसके आगे पड़ी थी। मैं जैसे ही बॉल लेने गया उसने अचानक मेरी और देखा।
यह “तालाब” की दूसरी कहानी है, इसमें एक भूत नज़र आता है, वह “तालाब” में से कभी कभी देखता है, लेकिन कुछ लोग यह मानते है, की कोई भूत नहीं है, लेकिन जिन्होंने देखा है वह मानते है, जिन्होंने नहीं देखा है, वह नहीं मानते है, हम अपनी कहानी में आगे बढ़ते है, यह उस दिन की बात है, जब वह आदमी अपने गांव में वापिस आ रहा था, उसे आने में बहुत देरी हो गयी थी, इसलिए वह “तालाब” के छोटे रास्ते से आ रहा था,
माँ… माँ… मुझे बहुत डर लग रहा है…..”
डर मत बेटा… मैं हूँ तेरे साथ… तूने क्या देखा बता बिना डरे? “
माँ उसका पेट चिरा हुआ था और उसका शरीर और चेहरा खून से लथपथ था। उसका पेट बुरी तरह से चीरा हुआ लग रहा था । उसको देख में बहुत डर गया। तालाब का भूत
माँ.. वो मुझे घूरने लगी। मैं तुरंत वहाँ से खेत में आ गया ।
और मेरे दोस्त मुझे छोड़कर पहले ही भाग आये थे।
जैसे उनको सब पता हो।” तालाब का भूत
रामकेश हकलाते हुए बोला जिसके पसीने अभी भी रुक नही रहे थे। बेटा भगवान का शुक्र है तू बच गया। मैने तुमको नही बताया । लेकिन तेरे सब दोस्त क्या पूरा गाँव जानता है उस जोहड़ की दास्तान वो कोई नही मक्खन की लुगाई है।”
माँ ने रामकेश के सिर पर हाथ फिराते हुए मक्खन कोन मक्खन । रामकेश मां की आंखों में देखते हुए बोला। “अपने गाँव के सरपंच गिरधारी काका के बेटे मक्खन की लुगाई खेलन्ता । जब उसके पेट में बच्चा था । तालाब का भूत तो उसको हॉस्पिटल डिलीवरी के लिए ले गए थे।
तो हॉस्पिटल में उसकी आपरेशन से मरी हुई बेटी हुई थी और कुछ देर बाद ही वो खुद भी मर गयी। उसके बाद उसकी बेटी को सूख चुके जोहड़ में गाड़ दिया था। और उसको भी थोड़ा आगे जोहड़ में ही जलाया था।उसकी बेटी उसी पत्थर के नीचे दफन है जिस पर वो बैठी थी । उसकी आत्मा अपनी बेटी के विरह में भटकती रहती है।
उसके ऑपरेशन के समय उसका पेट चीरा था इसीलिए उसका पेट तुमको चिरा दिखा था। आज के बाद तुम उस जोहड़ में भूलकर भी मत जाना तालाब का भूत ।”
माँ ने रामकेश को समझाया “माँ मुझे बहुत डर लग रहा है। “रामकेश काँपते हुए बोला ।
ये ले हनुमान चालीसा इसका पाठ कर डर गायब हो जाएगा ”
माँ ने रामकेश को हनुमान चालीसा की किताब दिखाते हुए कहा रामकेश हनुमान चालीसा का पाठ करता है। उसी रात को रामकेश के सामने एक खून से लथपथ बाल बिखरे हुए बड़े तीक्ष्ण नाखून वाली भयानक दिखने वाली एक स्त्री खड़ी थी। उसके एक पीले रंग के कपड़ों में । कही कही पीला रंग था बाकी सब रक्तरंजित था। “
तू मुझे अकेला छोड़ के आ गया ।चल में तुझे वापस लेने आई हूँ।”
ऐसा कहते हुए वो लगातार रामकेश की ओर बढ़ रही थी। उसके इस डरावने स्वरूप को देख के रामकेश बुरी तरह से डर जाता है। और चिल्ला उठता है मुझे छोड़ दो…. मुझे छोड़ दो….” तभी- क्या हुआ बेटा?
क्या कोई भयानक सपना देख लिया तालाब का भूत तालाब का भूत ” माँ ने रामकेश को अपनी छाती के लगा लिया “
माँ…. वो…वो…. अभी-अभी मुझे लेने यहाँ आयी थी । और बोल रही थी मुझे साथ लेकर जाएगी”
रामकेश रो पड़ा। “
बेटा तूने बस एक सपना देखा है । यहाँ कुछ भी नही है। आजा मेरे पास सोजा।” माँ ने रामकेश को अपने पास सुला लिया। माँ मन ही मन सोच रही थी-खेलनता की बुरी नजर मेरे बेटे पर है। मुझे कुछ करना होगा वरना ये मेरे इकलौते को मुझसे छीन लेगी । पति के गुजरने के बाद मेरा एक यही सहारा है। है बजरंगबली मेरे बेटे की उस डायन से रक्षा करना। अगली सुबह : बाबा मेरे बच्चे की रक्षा करो।” रामकेश की माँ उसे बाबा सुलपा के पास ले गयी थी। आओ बेटी… तुम भी उस खेलन्ता से छुटकारे के लिए आई हो मैं जानता हूँ।” सुलपा बाबा ने कहा ।”बाबा आपको कैसे पता बाबा..?”माँ ने आश्चर्य से पूछा। बेटी उस आत्मा से पूरा गाँव पीड़ित है। कोई न कोई आता ही रहता है।।तो मैं समझ गया कि तुम भी उसी से पीड़ित हो ।”सुलपा बाबा ने कहा हाँ बाबा… मेरा बेटा गलती से गाँव के जोहड़ में चला गया । वहाँ उसने
इसे देख लिया ।तब से ये बहुत डर हुआ है। बाबा आप कुछ करो।” माँ ने उदास स्वर में अपनी पीड़ा बयाँ की ।
शायद कोई मछली भी हो सकती है, वह अपने घर की और चला जा रहा था, उसे फिर से कुछ अहसास होता है, वह पीछे “तालाब” की और देखता है, अब उसे सब कुछ समझ आ जाता है, वह भूत “तालाब” के पाने पर खड़ा हुआ था, वह उसे ही देख रहा था, अब उसे बहुत डर लग रहा था, इससे पहले उसने “तालाब” में ऐसी कोई भी घटना नहीं सुनी थी, उसे लगता था की यह कोई भूत है, वह बहुत डर रहा था,
बेटी… वो डायन उस जोहड़ में रम चुकी है। उसकी बेटी भी वही गड़ी है ।और वो अपनी बच्ची के विरह में भटक रही है। वो उसे छोड़कर कही नही जाएगी। उसका अंत करना बहुत मुश्किल है। उसकी ताकत बहुत बढ़ चुकी है। उसके अंत के लिए कोई हिम्मत वाला व्यक्ति मेरे साथ हो तो ही में ऐसा कदम उठा सकता हु जिससे उसका अंत हो सके लेकिन कोई ऐसा हिम्मत वाला निडर नही है। जो मेरा साथ दे सके में अकेला उस आत्मा का खात्मा नही कर सकता बेटी।तुम ये ताबीज अभी अपने बेटे को पहना दो ।
इससे उसकी रक्षा होती रहेगी। जब तक ये इसके गले मे होगा । वो इसका चाहकर भी कुछ नही बिगाड़ सकती।”
सुलपा बाबा ने माँ को समझाया। बाबा… आप सही कहते हैं । यहाँ कोई नही जो आपका साथ दे । सब मर्द
डरपोक हैं। बाबा आप मेरे बेटे पर अपनी दया दृष्टि बनाये रखना ।”बेटा मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है ।”
बाबा ने कहा । माँ ताबीज रामकेश को पहना दिया है।
“रामकेश के पिता दो भाई थे। छोटे भाई के घर- ये जी सुनते हो.. कल रामकेश को जोहड़ में खेलन्ता दिख गयी । वो तब से डर रहा है। उसके सपने में खेलंता आयी थी। वो बोली कि वो रामकेश को ले जाएगी।”मुफ्त के दो के पैग और मारू… ( बोलने की आदत है) कमली तू अगर
सही कह रही है तो रामकेश का अंत समीप है। वो जिसको ले जाने की कहती है ।उसको ले जाकर रहती है।”राकेश के चाचा बद्री ने कहा फिर तो हमारा एक कांटा तो साफ हो जाएगा फिर उसकी मां को मारकर हम पूरी जायदाद हड़प लेंगे।ओर मस्त जिंदगी जिएंगे। कमली ने अपनी घटिया सोच व्यक्त की। “
हाँ… मेरी कम्मो… मुफ्त के दो पैग और मारू तू बिलकुल सही बोल रही है। हम ऐसा ही करेंगे।” बद्री अपनी डरावनी मुस्कान के साथ कहा लेकिन तुम्हारी भाभी तो सुलपा के पास जाकर उसका ताबीज बनवा
लायी । अब खेलन्ता उसका कुछ नही कर सकती।”
कमली ने आँखे गोली जैसी करते हुए कहा ।”
मुफ्त के दो पैग और मारू… तू सुन मेरी बात आज रात हम उनके पास जाएंगे । भाभी हमारे लिए चाय बनाएगी तो तुम बोलना की आप बैठो चाय मैं बना लाती हूँ ।और तुम उन दोनों की चाय में नींद की दवा डाल देना । तालाब का भूत बस बाकी काम मुझ पर छोड़ दो।” पता नही बद्री के शैतान दिमाग में क्या खुराफात चल रही थी ।